B.Com. Semester-V MONETARY THEORY AND BANKING IN INDIA - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीकाम सेमेस्टर-5 भारत में मौद्रिक सिद्धान्त एवं बैंकिंग - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-5 भारत में मौद्रिक सिद्धान्त एवं बैंकिंग

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2809
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बीकाम सेमेस्टर-5 भारत में मौद्रिक सिद्धान्त एवं बैंकिंग - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- भारत में जनसमुदाय की भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कितने प्रकार के बैंकों का गठन किया गया है? 

उत्तर -

बैंकों का वर्गीकरण
(Classification of Banks)

जैसे-जैसे आर्थिक विकास का रास्ता प्रशस्त होता रहा वैसे-वैर एक प्रकार की बैंक से पूरी अर्थव्यवस्था के सभी कार्य सम्भव नहीं हो पाये। शायद इसीलिये किसी देश में कार्यों के आधार पर बैंकों को अनेक भागों में विभाजित किया गया। बैंकों के विभिन्न प्रकार प्रायः निम्नलिखित हैं-

1. केन्द्रीय बैंक (Central Banks) - आज के समय में बैंक की सबसे बड़ी संस्था केन्द्रीय बैंक है जिसे देश की सम्पूर्ण बैंकों की प्रधान बैंक का स्थान प्राप्त है तथा जिसके द्वारा साख नियन्त्रण, बैंकों का बैंक, मौद्रिक नीति तथा नोट निर्गमन सम्बन्धी कार्यों को पूरा किया जाता है। केन्द्रीय बैंक को किसी देश की रीढ़ की हड्डी कहना गलत नहीं है क्योंकि सम्पूर्ण मौद्रिक व्यवस्था इसी बैंक पर निर्भर होती है। यह सरकार की खातेदार भी होती है परन्तु स्वायत्तशासी स्वतन्त्र संस्था के रूप में विद्यमान होती है। इस बैंक को भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के नाम से भी पहचाना जाता है।

2. कृषि बैंक (Agricultural Banks) - कृषि बैंकों का निर्माण भी एक अभूतपूर्व घटना है जिसका जन्म एवं विकास कृषि की समस्याओं के कारण हुआ। जो देश कृषि प्रधान होते हैं उन देशों में कृषि बैंकों का उपयोग अधिक होता है क्योंकि कृषि प्रधान देशों को भी उद्योगों की भाँति ऋण की आवश्यकता होती है। अगर कृषि प्रधान देशों की तरफ ध्यान दें तो यह कहना उचित है कि व्यापारिक एवं औद्योगिक कार्यों की अपेक्षा कृषि के ऋण एक प्राथमिक आवश्यकता हैं। इस तरह से कृषि को यन्त्र, खाद, बीज के लिए दीर्घकालीन, अल्पकालीन व मध्यमकालीन ऋणों की आवश्यकता होती है। जिस समय कृषि क्षेत्र में स्थायी सुधार करना होता है उस समय दीर्घकालीन ऋण की आवश्यकता होती है। आज के समय में कृषि क्षेत्र में ऋणों को देने के लिए नाबार्ड, भूमि बन्धक बैंक व कृषि बैंक तथा सहकारी समितियों का निर्माण किया गया हैं।

3. व्यापारिक बैंक (Commercial Bank) - बैंकों का तीसरे प्रकार का बैंक व्यापारिक बैंक है जिसके द्वारा सिर्फ व्यवसाय सम्बन्धी कार्यों के लिये अल्पकालीन साख प्रदान की जाती है। जनता के निक्षेप को ये बैंक स्वीकार करते हैं और ऋण की सहायता से व्यापारिक कार्यों को गति प्रदान करते हैं। इन बैंकों के ऋण प्रतिभूतियों के आधार पर प्रदान किये जाते हैं। इस प्रकार के बैंक निक्षेप व ऋण के अतिरिक्त कोष स्थानान्तरण व सूचनाएं प्रदान करने में बहुत महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करते हैं। लम्बे समय तक ऋण प्रदान करने में ये बैंक पूर्ण रूप से सक्षम होते हैं। अतः इन बैंकों के द्वारा ऋण सिर्फ 3 महीने से 6 महीने तक लिया जा सकता है।

आज के समय में व्यापारिक बैंकों के कार्यों में वृद्धि हो रही है। अतः बैंक अभिकर्ता सम्बन्धी कार्य भी कर रहे हैं। इन बैंकों की शाखाओं को ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्थापित किया जा रहा है और कृषि सम्बन्धी व्यावसायिक कार्यों में सहयोग प्रदान किया जा रहा है। इस तरह से ये बैंक लोगों के प्रिय बैंक बन गये हैं।

4. विदेशी विनिमय बैंक (Foreign Exchange Bank) - आज के समय में कोई भी देश पूरी तरह से स्वयं पर निर्भर नहीं है। विदेशी व्यापार आवश्यक हो गये हैं। परन्तु देशों में अपरिवर्तनीय पत्र - मुद्रा चलन में होने के कारण विदेशी व्यापार के सामने अनेक समस्याएँ आ गयी हैं, इन सभी कारणों से विदेशी विनिमय बैंक का निर्माण किया गया।

ये बैंक विश्व के सम्पूर्ण देशों की मुद्राओं को कोष में रखते हैं जिससे व्यापार सम्पन्न हो जाने पर सम्बन्धित देश की मुद्राओं में भुगतान किया जा सके। इस प्रकार ये बैंकें विदेशी मुद्राओं को विनिमय दर के अनुसार सम्बन्धित ग्राहकों को इच्छानुसार देश की मुद्रा का भुगतान करती हैं। इन बैंकों की स्थापना हो जाने के साथ ही साथ व्यापार की समस्याओं का भी उन्मूलन हो गया है। वर्तमान समय में कुछ व्यापारिक बैंक इन बैंकों के रूप में कार्य कर रही हैं।

5. औद्योगिक बैंक (Industrial Banks) - वर्तमान बैंकों के समय में औद्योगिक बैंकों ने अपनी एक अलग जगह बनायी है। विश्व में औद्योगीकरण के विकास को जैसे-जैसे गति प्राप्त है वैसे ही व्यापारिक बैंकों की भूमिका अल्पकालीन साख पर स्थित होने के कारण ऐसे बैंकों की माँग होने लगी, जो उद्योगों को लम्बे समय तक के लिए ऋण दे सकें। फलस्वरूप विश्व के देशों में "औद्योगिक बैंकों” की स्थापना हुई जो औद्योगिक इकाइयों को मध्यमकालीन और दीर्घकालीन ऋण देने में समर्थ हैं। इसी तरह औद्योगिक बैंक लम्बे समय तक ऋण देने के साथ-साथ अंशपत्रों का विक्रय व औद्योगिक समस्याओं पर सलाह देने का कार्य करती हैं। इनके ऋणों को धीरे-धीरे दीर्घकाल में अदा किया जाता है। यदि औद्योगिक बैंकों का मूल्यांकन किया जाये तो निःसन्देह वर्तमान औद्योगिक युग को पोषित करने में इन बैंकों का महत्वपूर्ण सहयोग है। औद्योगिक पत्त में वृद्धि करने के उद्देश्य से कुछ देशों में निगमों की स्थापना की गयी है जो औद्योगिक विकास ऋण उपलब्ध करने का कार्य कर रहे हैं।

6. देशी बैंकर्स (Indigenous Bankers) - इस बैंक क सम्बन्ध उस फर्म एवं व्यक्ति से होता है जो अल्पकालोन ऋण देने, हुण्डी भुनाने, जनता के धन को जमा करने का कार्य करते हैं। इस तरह के लोगों में सम्पन्न किसान, सुनार, सर्राफ व साहूकार इत्यादि शामिल होते हैं जो पुराने समय में अधिक प्रचलित थे। संविधि के द्वारा भारत में देशी बैंकों को समाप्त कर दिया गया है। परन्तु आज भी लाइसेन्सधारक फाइनेन्सर्स देशी बैंकर्स के रूप में कार्यरत हैं जबकि इन्होंने गाँव को छोड़कर शहरों में वित्तीय कार्य शुरू किये हैं। ये बैंक अनेक दोषों से पूर्ण भी रहे जिन्होंने गरीब व्यक्तियों से अधिक ब्याज वसूलने का कार्य किया था। सरकार ने इन बैंकों को हरिजनों पर ऋण समाप्त करने को कहा जिससे इनको हानि हुई। कृषि क्षेत्र में आज भी 90 प्रतिशत ऋण ये बैंक ही प्रदान करते हैं।

भारतीय बैंकिंग प्रणाली के संघटक अंग
(Constituting Part of Indian Banking System)

1. भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) - यह भारत का केन्द्रीय बैंक है। इस बैंक पर सरकार का स्वामित्व है। यह बैंक देश की बैंकिंग तथा मुद्रा प्रणाली के उचित कार्यान्वयन हेतु उत्तरदायी माना जाता है। इस बैंक का राष्ट्रीयकरण 1 जनवरी, 1949 को किया गया था। इसका प्रबन्ध केन्द्रीय संचालक मंडल द्वारा किया जाता है।

2. वाणिज्यिक बैंक (Commercial Banks) - हमारे देश में वाणिज्यिक बैंकों की शुरुआत निजी क्षेत्र में हुई थी। जुलाई 19, 1969 को देश के 14 निजी बैंकों जिनके निक्षेप रु.50 करोड़ से अधिक थे, का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। अप्रैल, 1980 में 6 और बैंकों का राष्ट्रीकरण कर दिया गया।

3. सहकारी बैंक (Co-operative Banks) - सहकारी बैंकों द्वारा वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है। ये बैंक निम्नलिखित स्तरों पर कार्य करते हैं-

(i) प्राथमिक साख समितियाँ - गाँव स्तर पर
(ii) केन्द्रीय सहकारी बैंक - जिला स्तर पर
(iii) राज्य सहकारी बैंक - राज्य स्तर पर।

इस प्रकार सहकारी बैंक त्रि-स्तरीय बैंक होते हैं।

4. ग्रामीण बैंक (Rural Banks) - ग्रामीण बैंकों को बड़े बैंकों द्वारा प्रायोजित किया गया है। हमारे देश में ग्रामीण बैंकों की स्थापना का शुभारम्भ अक्टूबर 1975 में हुआ। ये ग्रामीण बैंक सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की कुल जमा राशि का 78.6 प्रतिशत एकत्र करते हैं। ग्रामीण इलाकों में छोटे ऋण लेने वालों को और अधिक ऋण प्रदान करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक स्थापित किए गए हैं।

5. विकास बैंके (Development Banks) - विकास बैंकें बड़े उद्योगों के लिए धन की व्यवस्था करती है। ये संस्थाएँ निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं-

(a) सरकारी क्षेत्र में (In Government Sector) - सरकारी क्षेत्र के विकास हेतु निम्नलिखित संस्थाएँ हैं-

(i) भारतीय औद्योगिक विकास बैंक,
(ii) औद्योगिक वित्त निगम,
(iii) राज्यों के राज्य वित्त निगम।

उपरोक्त के द्वारा सरकारी एवं निजी क्षेत्र के मध्यम तथा बड़े उद्योगों को वित्तीय सुविधा दी जाती है।

(b) निजी क्षेत्र में (In Private Sector) - औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम निजी उद्योगों के लिए वित्तीय व्यवस्था करता है।

देश में वाणिज्यिक बैंकिंग व्यवस्था के अंतर्गत विदेशी बैंकों सहित 31 मार्च, 2003 की स्थिति के अनुसार 290 अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक हैं। सार्वजनिक क्षेत्र अर्थात् राष्ट्रीयकृत बैंकों के शेष 27 बैंक (स्टेट बैंक समूह सहित ) वाणिज्यिक बैंक हैं और बैंक - संबंधी सभी व्यावसायिक कार्य करते हैं।

मार्च, 2003 की स्थिति के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में राष्ट्रीयकृत बैंक समूह सबसे बड़ा था। इसके 32,655 कार्यालय हैं। 6,47,785 करोड़ रुपए की जमा राशि थी।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- "मुद्रा वह धुरी है जिसके चारों ओर सम्पूर्ण अर्थतंत्र चक्कर लगाता है।" कथन को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- समाजवादी एवं नियोजित अर्थव्यवस्था में मुद्रा का क्या महत्व है?
  3. प्रश्न- मुद्रा का आशय एवं परिभाषा बताइये तथा उसके कार्यों को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- मुद्रा के मुख्य कार्य कौन-कौन से हैं? मुद्रा के द्वितीयक कार्य क्या होते हैं?
  5. प्रश्न- मुद्रा के आकस्मिक कार्यों का वर्णन कीजिए। पॉल इन्जिंग ने मुद्रा के कार्यों को कितने भागों में बांटा है?
  6. प्रश्न- मुद्रा की परिभाषा से सम्बन्धित विभिन्न दृष्टिकोण क्या हैं? मुद्रा के प्रमुख लक्षण बताइये।
  7. प्रश्न- "मुद्रा कई बुराइयों की जड़ है।" क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
  8. प्रश्न- मुद्रा की पूर्ति से आप क्या समझते हैं? इन्हें प्रभावित करने वाले कारकों तथा पूर्ति के मापन की विधियां बताइये।
  9. प्रश्न- मुद्रा पूर्ति के मापक व संघटक बताइये।
  10. प्रश्न- उच्च शक्ति मुद्रा से क्या तात्पर्य है? उच्च शक्ति मुद्रा के संघटकों की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- उच्च शक्ति मुद्रा के संघटकों की विवेचना कीजिए।
  12. प्रश्न- मुद्रा के मूल्य से आप क्या समझते हैं? यह कैसे तय होता है?
  13. प्रश्न- उच्च शक्ति मुद्रा सामान्य मुद्रा (संकुचित मुद्रा) से किस प्रकार भिन्न होती है?
  14. प्रश्न- उच्च शक्ति मुद्रा एवं सामान्य मुद्रा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  15. प्रश्न- मुद्रा की माँग से आप क्या समझते हैं? मुद्रा की माँग किन-किन बातों से प्रभावित होती है?
  16. प्रश्न- उच्च शक्ति मुद्रा के उपयोग व महत्व को बताइये।
  17. प्रश्न- उच्च शक्ति मुद्रा के स्रोत क्या हैं?
  18. प्रश्न- भारत में वित्तीय प्रणाली को सविस्तार समझाइये।
  19. प्रश्न- वित्तीय प्रणाली की विशेषताएं बताइये।
  20. प्रश्न- वित्तीय प्रणाली के संघटक क्या हैं?
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि वित्तीय प्रणाली आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।.
  22. प्रश्न- वित्तीय मध्यस्थ से आप क्या समझते हैं? वित्तीय मध्यस्थों के कार्यों का वर्णन कीजिए। "वित्तीय मध्यस्थ प्रतिभूतियों के व्यापारी होते हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
  23. प्रश्न- वित्तीय मध्यस्थों की कार्य एवं भूमिका का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थ एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थ में अन्तर बताइये। गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं से आप क्या समझते हैं?
  25. प्रश्न- गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं की भूमिका का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- वित्तीय मध्यस्थों के प्रकार बताइये।
  27. प्रश्न- वित्तीय मध्यस्थ क्या हैं?
  28. प्रश्न- वाणिज्य बैंकों के कार्यों की विवेचना कीजिए। वे किस प्रकार देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण हैं?
  29. प्रश्न- वाणिज्यिक बैंक के प्रमुख एवं अभिकर्ता सम्बन्धी कार्य कौन-कौन से हैं? तथा उनके अन्य कार्य भी बताइए।
  30. प्रश्न- वाणिज्यिक बैंकों का देश के आर्थिक विकास में क्या महत्व है?
  31. प्रश्न- आधुनिक व्यापार एवं वित्त के संदर्भ में बैंकों की कमियाँ बताइये।
  32. प्रश्न- भारतीय बैंकिंग व्यवस्था की प्रमुख कमियाँ बताइये।
  33. प्रश्न- शाखा बैंकिंग तथा इकाई बैंकिंग प्रणालियों से आप क्या समझते हैं? इनके गुण-दोषों की तुलना कीजिए तथा बताइये कि इन दोनों प्रणालियों में से कौन-सी प्रणाली भारत के लिए उपयुक्त है?
  34. प्रश्न- शाखा बैंकिंग के गुण-दोषों की विवेचना कीजिए।
  35. प्रश्न- इकाई बैंकिंग प्रणाली के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- इकाई बैंकिंग प्रणाली व शाखा बैंकिंग प्रणाली में कौन श्रेष्ठ है? स्पष्ट कीजिए। एक श्रेष्ठ बैंकिंग प्रणाली के लक्षण बताइये।
  37. प्रश्न- भारत में जनसमुदाय की भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कितने प्रकार के बैंकों का गठन किया गया है?
  38. प्रश्न- भारतीय बैंकिंग प्रणाली की संरचना पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक क्या हैं? इनके क्या कार्य हैं? ग्रामीण भारत में इनकी भूमिका तथा प्रगति का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- क्षेत्रीय ग्रामीण बैकों की प्रगति व उपलब्धियाँ बताइये।
  41. प्रश्न- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की कमियों को दूर करने हेतु सुझाव दीजिए।
  42. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना के क्या उद्देश्य थे? क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की कार्यप्रणाली के सम्बन्ध में केलकर समिति के सुझाव समझाइए।
  43. प्रश्न- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की कार्यप्रणाली के सम्बन्ध में केलकर समिति के सुझाव बताइए।
  44. प्रश्न- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के कार्य विवरण पर टिप्पणी लिखिए।
  45. प्रश्न- वाणिज्य बैंक एवं क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में अन्तर बताइए।
  46. प्रश्न- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की कमियाँ व समस्याएँ बताइये।
  47. प्रश्न- सहकारी साख संस्थाओं की प्रमुख समस्याएँ क्या हैं? इन्हें दूर करने के लिए सुझाव दीजिए। सहकारी साख ढाँचे को सुदृढ़ करने के लिए क्या सरकारी प्रयास किये गये हैं?
  48. प्रश्न- प्राथमिक कृषि साख समितियों के उन्नयन हेतु आप क्या सुझाव देंगे?
  49. प्रश्न- केन्द्रीय सहकारी बैंकों की क्या समस्याएं हैं?
  50. प्रश्न- केन्द्रीय सहकारी बैंकों के सुधार हेतु सुझाव दीजिए।
  51. प्रश्न- भारत देश में राज्य सहकारी बैंकों की क्या समस्याएं हैं?
  52. प्रश्न- राज्य सहकारी बैंकों के विकास हेतु सुझाव दीजिए।
  53. प्रश्न- सहकारी साख ढाँचे को सुदृढ़ करने के लिए क्या सरकारी प्रयास किये गये हैं?
  54. प्रश्न- प्राथमिक सहकारी समितियों की विशेषताओं को लिखिए।
  55. प्रश्न- भारत में सहकारी बैंक की कार्यप्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  56. प्रश्न- सहकारी बैंक तथा वाणिज्यिक या व्यापारिक बैंक में अन्तर बताइए।
  57. प्रश्न- प्राथमिक सहकारी बैंक क्या है? उनकी ग्रामीण भारत में क्या भूमिका है?
  58. प्रश्न- भारत में राज्य सहकारी बैंकों का संगठन तथा कार्य समझाइये। राज्य सहकारी बैंकों को आप क्या सुझाव देंगे?
  59. प्रश्न- सहकारी साख संस्थाओं की प्रमुख समस्यायें क्या हैं? सहकारी साख ढाँचे को सुदृढ़ करने के लिए क्या सरकारी प्रयास किये गये हैं?
  60. प्रश्न- भूमि विकास बैंकों की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  61. प्रश्न- साख का आशय, परिभाषायें तथा आवश्यक तत्वों का वर्णन कीजिए। साख के महत्व का वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- साख का क्या महत्व होता है?
  63. प्रश्न- साख का वर्गीकरण किन आधारों पर किया जाता है? इसके वर्गीकरण को समझाइये।
  64. प्रश्न- समयावधि, उपभोग एवं सुरक्षा के आधार पर साख का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- स्वरूप के आधार पर ऋण का वर्गीकरण कीजिए। ऋण के आधार पर साख का वर्गीकरण कीजिए।
  66. प्रश्न- ब्याज के तरलता पसन्दगी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  67. प्रश्न- संस्थागत साख के आवंटन को निर्धारित करने वाले वित्तीय एवं गैर- वित्तीय घटकों को स्पष्ट कीजिए।
  68. प्रश्न- संस्थागत साख के आबंटन को निर्धारित करने वाले गैर-वित्तीय घटकों को स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- साख निर्माण की सीमाएँ बताइये।
  70. प्रश्न- तरलता प्रीमियम सिद्धान्त क्या है?
  71. प्रश्न- नवपरम्परावादी सिद्धान्त और पूर्ति क्या है? बॉण्ड की कीमत व बॉण्ड दर में क्या सम्बन्ध है?
  72. प्रश्न- "जमा द्रव्य ऋणों का सृजन करते हैं तथा ऋण जमा का सृजन करते हैं।" इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- बैंक द्वारा साख सृजन पर प्रभाव डालने वाले घटकों की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- ब्याज दरों पर मुद्रा प्रसार के प्रभावों को बताइये।
  75. प्रश्न- भारतीय औद्योगिक विकास बैंक क्या है? इसके कार्यों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- भारतीय औद्योगिक विकास बैंक के कार्यो का वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए-
  78. प्रश्न- भारतीय औद्योगिक वित्त निगम का वर्णन कीजिए।
  79. प्रश्न- भारत में विकास बैंकों के कार्यकरण का आलोचनात्मक मूल्याँकन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारत में गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों पर एक निबन्ध लिखिए।
  81. प्रश्न- भारत में गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों की प्रगति के क्या कारण हैं? इनकी क्या कमियाँ हैं? इन्हें दूर करने हेतु सुझाव भी दीजिए।
  82. प्रश्न- संस्थागत साख आवंटन की समस्या और नीतियों की व्याख्या कीजिए।
  83. प्रश्न- राज्य वित्तीय निगमों का संक्षिप्त परिचय देते हुए इनके कार्यों को बताइये।
  84. प्रश्न- भारतीय यूनिट ट्रस्ट पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  85. प्रश्न- विकास बैंक क्या है? विकास बैंक के प्रमुख कार्य लिखिए।
  86. प्रश्न- उद्योगों को वित्त प्रदान करने वाली वित्तीय संस्थाओं के नाम बताइये। भारत में विकास बैंकों की संरचना बताइये।
  87. प्रश्न- भारतीय औद्योगिक विकास बैंक किस प्रकार से औद्योगिक वित्त प्रदान करता है?
  88. प्रश्न- भारतीय निर्यात-आयात बैंक की स्थापना, कार्यों तथा संचालित किये जाने वाले कार्यक्रमोंको समझाइये।
  89. प्रश्न- भारतीय निर्यात-आयात बैंक द्वारा विदेशी व्यापार के संवर्धन हेतु कौन-कौन से कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं?
  90. प्रश्न- राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक से आप क्या समझते हैं? नाबार्ड द्वारा कृषि एवं ग्रामीण विकास के क्षेत्र में क्या कार्य किये जाते हैं? इस बैंक की सफलताओं का वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- भारत में विकास बैंक की मुख्य कमियाँ क्या हैं?
  92. प्रश्न- गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  93. प्रश्न- विकास बैंकों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  94. प्रश्न- भारतीय रिजर्व बैंक के संगठन एवं कार्यो को समझाइये।
  95. प्रश्न- रिजर्व बैंक के केन्द्रीय बैंकिंग सम्बन्धी प्रमुख कार्यों को बताइए।
  96. प्रश्न- भारतीय रिजर्व बैंक की सफलताओं एवं असफलताओं का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- भारतीय रिजर्व बैंक की असफलताओं पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  98. प्रश्न- साख नियंत्रण से आप क्या समझते हैं? साख नियंत्रण की कौन-कौन सी विधियाँ हैं? साख नियंत्रण की परिमाणात्मक विधियों को समझाइये।
  99. प्रश्न- साख नियंत्रण की विधियाँ बताइये।
  100. प्रश्न- परिमाणात्मक या संख्यात्मक साख नियंत्रण से आप क्या समझते हैं? बैंक दर विधि को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- खुले बाजार की क्रियाओं से क्या आशय है? इनके उद्देश्य एवं परिसीमाएँ बताइए।
  102. प्रश्न- नकद संचय अनुपात से आप क्या समझते हैं? तरल कोषानुपात विधि क्या है?
  103. प्रश्न- भारतीय रिजर्व बैंक की वर्तमान साख नियंत्रण व्यवस्था का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  104. प्रश्न- भारतीय रिजर्व बैंक की साख नियन्त्रण व्यास्था की क्या आलोचनायें हैं?
  105. प्रश्न- भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के मुख्य प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- भारतीय रिजर्व बैंक की विद्यमान साख नियंत्रण यान्त्रिकी का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  107. प्रश्न- भारत में प्रशासित ब्याज दर का इतिहास लिखिए। भारत में ब्याज दरों के नियमन के क्या कारण हैं?
  108. प्रश्न- भारत में ब्याज दरों के विनियमन के क्या कारण हैं?
  109. प्रश्न- भारतीय रिजर्व बैंक के विकासात्मक कार्य बताइए।
  110. प्रश्न- ब्याज दर किसे कहते हैं? विभिन्न प्रकार की ब्याज दरों को स्पष्ट कीजिए।
  111. प्रश्न- भारतीय अर्थव्यवस्था पर मुद्रा-स्फीति और मुद्रा-स्फीति के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- भारतीय रिजर्व बैंक के वर्जित कार्य कौन-कौन से हैं? आर. बी. आई. किस प्रकार एन. बी. एफ. सी. का नियंत्रण करती है?
  113. प्रश्न- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए - (a) मौद्रिक नीति (b) बैंक दर (c) नकद कोषानुपात
  114. प्रश्न- भारतीय मौद्रिक नीति के उद्देश्य लिखिए।
  115. प्रश्न- भारतीय रिजर्व बैंक का उद्भव बताइए। रिजर्व बैंक साख सूचना कार्यालय क्या है?
  116. प्रश्न- साख नियंत्रण के विभिन्न उद्देश्यों को बताइये।
  117. प्रश्न- भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना कब हुई? इसके प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- भारत जैसे विकासशील देश के लिए उपयुक्त मौद्रिक नीति की रूपरेखा का सुझाव दीजिए।
  119. प्रश्न- भारतीय रिजर्व बैंक की शक्तियों पर एक लेख लिखिए।
  120. प्रश्न- भारतवर्ष में भावी ब्याज दरों की प्रत्याशाएँ लिखिए। भारत वर्ष में ब्याज दरों के विनियमन की सीमाएँ लिखिए।

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